पालघर | जिले के मनोर ग्रामीण अस्पताल में हुई 22 वर्षीय महिला प्रीति जाधव की प्रसव उपरांत मौत ने एक बार फिर ग्रामीण स्वास्थ्य व्यवस्था की गंभीर खामियों को उजागर कर दिया है। प्रसव के दौरान हुए अत्यधिक रक्तस्राव के बाद भी अस्पताल में उचित सुविधा न होना, रक्त रोकने का प्रबंध न मिलना और समय पर एम्बुलेंस सेवा न मिल पाना—ये सब राज्य की स्वास्थ्य नीति पर बड़ा प्रश्नचिह्न हैं।
सूत्रों के अनुसार, मनोर अस्पताल में प्राथमिक चिकित्सा व्यवस्था तक सुदृढ़ नहीं है। ऐसे में गंभीर मरीजों को सिलवासा या ठाणे जैसे दूरस्थ सरकारी अस्पतालों में भेजा जाता है, जिससे अक्सर उपचार में देरी और जान गंवाने जैसी स्थिति बनती है। यही हाल प्रीति जाधव के साथ हुआ, जिन्हें सिलवासा ले जाते समय रास्ते में ही दम तोड़ना पड़ा।
मृतका के पति ने अस्पताल प्रशासन और संबंधित चिकित्सकों पर लापरवाही का आरोप लगाया है। वहीं, स्थानीय विधायक विलास तरे ने इस घटना को “सरकारी स्वास्थ्य विभाग की असंवेदनशीलता का प्रतीक” बताया। उन्होंने स्वास्थ्य मंत्री प्रकाश आबिटकर से मिलकर डॉक्टरों पर कार्रवाई, पीड़ित परिवार को मुआवजा, और मनोर में ट्रॉमा केयर सेंटर स्थापित करने की मांग रखी।
🔍 विश्लेषण : एक मौत, अनेक सवाल
यह घटना सिर्फ एक महिला की मौत नहीं, बल्कि स्वास्थ्य तंत्र की नाकामी की प्रतीक बन गई है। ग्रामीण स्तर पर न तो आपातकालीन सेवाएं समय पर मिलती हैं, न ही चिकित्सा उपकरणों की उपलब्धता सुनिश्चित है।
विशेषज्ञों के अनुसार, यदि प्राथमिक अस्पतालों को पर्याप्त संसाधन और प्रशिक्षित डॉक्टर उपलब्ध कराए जाएं, तो ऐसी कई जिंदगियाँ बचाई जा सकती हैं।
सरकार के “मातृ स्वास्थ्य सुरक्षा” और “108 एम्बुलेंस सेवा” जैसे अभियान कागजों पर प्रभावी दिखते हैं, परंतु ज़मीनी स्तर पर उनकी स्थिति चिंताजनक है। अब यह देखना होगा कि शासन इस दुखद घटना से सबक लेकर कब और कितना ठोस सुधार लाता है।