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आदिवासी अस्मिता की गूंज — पालघर में “आरक्षण बचाओ” आंदोलन ने दी सरकार को चेतावनी |

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पालघर (महाराष्ट्र), 14 अक्टूबर 2025

पालघर जिले में 14 अक्टूबर को आदिवासी समाज ने अपने आरक्षण और संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए एक ऐतिहासिक प्रदर्शन किया। हजारों की संख्या में आदिवासी पुरुष, महिलाएँ और युवा सड़कों पर उतरे और “हमारा आरक्षण, हमारा हक!” तथा “संविधान का सम्मान करो!” जैसे नारों से पूरा जिला गूंज उठा।

यह आंदोलन ‘आदिवासी आरक्षण बचाव क्रिया समिति’ के नेतृत्व में आयोजित किया गया था। इसका मुख्य उद्देश्य था — बंजारा और धनगर समाज को अनुसूचित जनजाति (ST) वर्ग में शामिल करने के सरकारी प्रयासों का विरोध करना। आंदोलन स्थल पर आदिवासी परंपरा, संस्कृति और जनशक्ति का अनोखा संगम देखने को मिला।

सुबह से ही क्रांतीवीर बिरसा मुंडा चौक पर बड़ी संख्या में लोग इकट्ठा हुए। पारंपरिक वाद्ययंत्रों और नृत्य के साथ उन्होंने अपने संघर्ष और संस्कृति का प्रदर्शन किया। शांतिपूर्ण तरीके से निकले मोर्चे ने जिलाधिकारी कार्यालय तक पहुंचकर अपना विरोध दर्ज कराया।

मोर्चे का नेतृत्व विधायक विलास तरे ने किया। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा

“आदिवासी आरक्षण पर कोई भी समझौता नहीं होगा। यह हमारा संवैधानिक हक है — कोई इसे छीन नहीं सकता।”

मोर्चे के अंत में जिलाधिकारी डॉ. इंदू रानी जाखड़ को ज्ञापन सौंपा गया, जिसमें सरकार की नीति को संविधानविरोधी बताते हुए पांच प्रमुख मांगें रखी गईं —

  1. बंजारा व धनगर समाज को अनुसूचित जनजाति में शामिल न किया जाए।
  2. आदिवासी भूमि के गैर-आदिवासी हस्तांतरण पर तत्काल रोक लगाई जाए।
  3. फर्जी जाति प्रमाणपत्रों की जांच कर रद्द किए जाएँ।
  4. पेसा कानून का प्रभावी कार्यान्वयन सुनिश्चित किया जाए।
  5. जिला परिषद सभागृह को वरिष्ठ नेता काळूराम काकड्या धोदडे के नाम से नामित किया जाए।

सभा में सांसद डॉ. हेमंत सवरा, विधायक राजेंद्र गावित, नेता हरिश्चंद्र भोये और माजी खासदार बळीराम जाधव समेत अनेक प्रमुख चेहरे मौजूद थे। सभी ने एक सुर में कहा कि “यदि आरक्षण से छेड़छाड़ की गई तो आदिवासी समाज सड़कों पर उतरकर बड़ा आंदोलन करेगा।”

आंदोलन शांतिपूर्ण रहा, लेकिन उसका संदेश तीखा और स्पष्ट था
“आरक्षण हमारा अधिकार है, और हम इसे किसी कीमत पर नहीं छोड़ेंगे।”

📜 सारांश:
पालघर का “आरक्षण बचाओ” आंदोलन आदिवासी समाज की एकजुटता, संस्कृति और संविधान के प्रति सम्मान का प्रतीक बन गया। यह सिर्फ अधिकारों का नहीं, बल्कि अस्मिता और न्याय के संघर्ष की नई शुरुआत साबित हुआ।

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Rajesh