पालघर (महाराष्ट्र):
डहाणू तालुका के तवा गांव में हुई गाय और बछड़ों की तस्करी की घटना ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि पशु संरक्षण कानूनों के बावजूद ऐसी घटनाएँ आखिर क्यों नहीं थम रहीं?
11 अक्टूबर की शाम को स्थानीय नागरिकों की सजगता से टेंपो में भरी गईं तीन गायें और तीन बछड़े बचा लिए गए। पुलिस जांच में सामने आया कि ये सभी पशु कथित रूप से वध के लिए ले जाए जा रहे थे।
🔍 घटनाक्रम का क्रमवार विश्लेषण
फिर्यादी शेखर शिवाजी झोटे (40), जो वसई के रहने वाले हैं, ने बताया कि कुछ लोगों ने टेंपो किराए पर लिया और पहले मनोर, फिर तवा गांव बुलाया। वहां से बिना किसी वैध अनुमति के गायों और बछड़ों को ठूंस-ठूंसकर टेंपो में भर लिया गया।
इन बेबस पशुओं को न पानी दिया गया, न खाना — जिससे पशु क्रूरता की पराकाष्ठा दिखाई दी।
सूचना पर कासा पुलिस ने तुरंत कार्रवाई करते हुए टेंपो को पकड़ा और सभी छह जानवरों को मुक्त कराया, जिनकी कीमत लगभग ₹67,000 आंकी गई।
⚖ कानूनी पहलू
इस मामले में कासा पुलिस ने 13 अक्टूबर को
भारतीय न्याय संहिता 2023 की धारा 303(2), 3(5)
पशु क्रूरता निवारण अधिनियम 1960 की धारा 11(1)(d), 11(1)(h)
महाराष्ट्र पशु संरक्षण अधिनियम 1976 की धारा 5(A)(1)
के तहत मुख्य आरोपी इमरान कुरैशी और दो अन्य अज्ञात व्यक्तियों पर मामला दर्ज किया है।
🧩 गहराई में जाएँ तो…
यह कोई अलग-थलग घटना नहीं है। ग्रामीण क्षेत्रों में पशु तस्करी का संगठित नेटवर्क काम कर रहा है जो रात के समय ऐसे कृत्य अंजाम देता है।
अक्सर देखा गया है कि चालक को यह बताकर बुलाया जाता है कि सामान ढोना है, लेकिन मौके पर अवैध रूप से जानवर लाद दिए जाते हैं।
🗣 जनता और पशुप्रेमियों की प्रतिक्रिया
घटना के बाद स्थानीय नागरिकों में आक्रोश है। लोगों का कहना है कि जब तक प्रशासन कठोर कार्रवाई नहीं करेगा, तब तक गौ-तस्करी और पशु क्रूरता के ये नेटवर्क फलते-फूलते रहेंगे।
पशुप्रेमियों ने मांग की है कि इस तरह के अपराधों में शामिल व्यक्तियों पर त्वरित न्याय प्रक्रिया के तहत कठोर दंड दिया जाए।
🔚 निष्कर्ष
डहाणू की यह घटना सिर्फ एक पुलिस केस नहीं, बल्कि मानवता और संवेदनशीलता की कसौटी है। यह सवाल उठाती है —
“क्या कानून केवल कागजों तक सीमित हैं, या वास्तव में हम पशुओं की रक्षा के लिए संवेदनशील समाज बनने को तैयार हैं?”