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गेहूं: प्रकृति की संजीवनी – डॉ. मीना अग्रवाल के अनुसार नेचुरोपैथी में इसके अद्भुत औषधीय गुण”|

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आगरा, 30 अक्टूबर 2025 — प्रसिद्ध नेचुरोपैथ डॉ. मीना अग्रवाल ने गेहूं को “प्रकृति की अनमोल देन” बताया है। उनके अनुसार, गेहूं केवल एक आहार नहीं, बल्कि कई रोगों के लिए प्राकृतिक उपचार है।

डॉ. अग्रवाल के अनुसार, गेहूं की रोटी खाने से 4 से 6 घंटे तक भूख नहीं लगती, जो वजन प्रबंधन में भी सहायक है। इसके अलावा, गेहूं के विभिन्न रूप—चाहे वह अंकुरित गेहूं हो, ज्वारे हों या उबले दाने—स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभदायक हैं।

उन्होंने कुछ प्रमुख उपचार बताए:

खांसी: 20 ग्राम गेहूं के दानों में थोड़ा नमक मिलाकर 250 ग्राम पानी में उबालें। जब पानी एक-तिहाई रह जाए, तो धीरे-धीरे पिएं। 7 दिनों में आराम मिलता है।
उदर शूल व छाती का दर्द: गेहूं के हरीरे में चीनी व बादाम का कल्क मिलाकर पीने से लाभ।
खुजली व त्वचा जलन: गेहूं के आटे को गूंथकर प्रभावित जगह पर लगाने से ठंडक मिलती है।
मूत्राशय की समस्याएं: 70 ग्राम गेहूं रात भर भिगोकर सुबह पीसकर मिश्री के साथ पीने से लाभ।
अस्थि भंग: भूने हुए गेहूं को पीसकर शहद के साथ सेवन करने से हड्डियां जल्दी जुड़ती हैं।
जहरीले कीट दंश: गेहूं के आटे में सिरका मिलाकर लगाने से विषाक्तता कम होती है।
फोड़े/दिल तोड़: मुंह में गेहूं के दाने चबाकर प्रभावित स्थान पर बांधने से 2-3 दिन में आराम।
पथरी: गेहूं व चने को उबालकर पानी पिलाने से पथरी पेशाब के माध्यम से निकल जाती है।
डॉ. अग्रवाल विशेष रूप से गेहूं के ज्वारों (wheatgrass) की प्रशंसा करती हैं, जिन्हें वे “इको ग्रीन ब्लड” या “संजीवनी बूटी” कहती हैं। उनके अनुसार, ज्वारों में क्लोरोफिल, विटामिन्स और एंटीऑक्सीडेंट्स भरपूर मात्रा में होते हैं, जो रक्त संचार, त्वचा रोग, किडनी, टाइफॉइड, एस्थमा और यहां तक कि कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों में भी लाभकारी हैं।

उन्होंने लॉस एंजिल्स (कैलिफोर्निया) में ज्वारे के रस की लोकप्रियता का भी जिक्र किया, जहां यह “ग्रीन जूस” के रूप में $1 में उपलब्ध है।

अंत में, डॉ. अग्रवाल ने सभी से अपील की कि वे अपने दैनिक आहार में अंकुरित गेहूं शामिल करें—जिससे पाचन तंत्र मजबूत होता है, त्वचा व बाल स्वस्थ रहते हैं, और शरीर की कोशिकाएं पुनर्जीवित होती हैं।

“गेहूं का कोई भी रूप लें—ज्वारे हों, अंकुरित दाने हों या उबला आटा—प्रकृति ने इसे स्वास्थ्य का खजाना बनाया है।”

— डॉ. मीना अग्रवाल, नेचुरोपैथ, आगरा

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Rajesh