आगरा, 7 नवंबर 2025:
पपीता केवल एक स्वादिष्ट फल नहीं, बल्कि आयुर्वेद एवं नेचुरोपैथी में एक संपूर्ण औषधि माना जाता है। प्रसिद्ध आयुर्वेदिक विशेषज्ञ एवं नेचुरोपैथ डॉ. मीना अग्रवाल के अनुसार, पपीता को “अमृत फल” एवं “कर्मफल” कहा जाता है, क्योंकि यह वात, पित्त और कफ तीनों दोषों को संतुलित करने की क्षमता रखता है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी पपीते में पाया जाने वाला पपेन एंजाइम पाचन तंत्र को स्वस्थ रखने, रक्त शुद्ध करने और त्वचा को चमकदार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। आयुर्वेद ग्रंथ चरक संहिता में भी इसकी प्रशंसा की गई है:
“फलं पपीतां पितवाहरं, पाचनं च उत्तमम।”
डॉ. अग्रवाल बताती हैं कि पपीते का प्रत्येक भाग—फल, बीज, पत्तियाँ और यहाँ तक कि इसका दूध (लैटेक्स) भी चिकित्सीय उपयोग में लिया जाता है। उन्होंने कुछ प्रभावी घरेलू नुस्खे साझा किए:
पाचन शक्ति बढ़ाने के लिए: सुबह खाली पेट पका हुआ पपीता।
त्वचा के लिए: पपीते का गूदा व शहद का फेस मास्क।
प्लेटलेट्स बढ़ाने के लिए: पपीते की पत्तियों का रस (विशेषकर डेंगू में)।
लीवर स्वास्थ्य के लिए: पपीते के बीज + शहद।
कब्ज व पेट साफ करने के लिए: रात में भोजन के बाद पपीता।
डॉ. अग्रवाल ने यह भी सलाह दी कि पपीता को दही के साथ नहीं खाना चाहिए, क्योंकि यह पाचन में बाधा उत्पन्न कर सकता है। इसके अलावा, कफ प्रकृति वाले लोगों को इसे सीमित मात्रा में दिन के समय ही लेना चाहिए।
आधुनिक विज्ञान भी इस बात की पुष्टि करता है कि पपीते में मौजूद कैरोटीनॉइड्स त्वचा को सूर्य की हानिकारक किरणों से बचाते हैं, जबकि इसके बीज लीवर की चर्बी व सूजन को कम करने में सहायक हैं।
डॉ. मीना अग्रवाल कहती हैं—
“पपीता प्रकृति की ओर से हमें मिली एक सरल, उपलब्ध और शक्तिशाली उपचार प्रणाली है। यह केवल फल नहीं, बल्कि एक प्राकृतिक डाइजेस्टिव मेडिसिन है जो ‘जठराग्नि’ को प्रज्वलित करता है।”
डॉ. मीना अग्रवाल – आयुर्वेदिक चिकित्सक एवं नेचुरोपैथ, आगरा