आगरा, 16 नवंबर 2025:
आजकल, हर तीसरी महिला PCOD (पॉलीसिस्टिक ओवेरियन डिसऑर्डर) से पीड़ित है। यह केवल एक गायनीकोलॉजिकल समस्या नहीं, बल्कि पूरे शरीर का हार्मोनल असंतुलन है—जो मासिक धर्म, वजन, त्वचा, तनाव और प्रजनन क्षमता सभी को प्रभावित करता है।
आयुर्वेद और नेचुरोपैथी में PCOD को “आर्तवदुष्टि” एवं “ग्रन्थिशोथ” के रूप में देखा जाता है, जिसका मूल कारण कफ व पित्त दोष का असंतुलन माना जाता है। डॉ. मीना अग्रवाल, जो आगरा की एक प्रतिष्ठित नेचुरोपैथ चिकित्सक हैं, कहती हैं:
“PCOD का उद्देश्य केवल सिस्टों को कम करना नहीं, बल्कि शरीर को भीतर से पुनः संतुलित करना है।”
प्राकृतिक उपचार का समग्र दृष्टिकोण (Holistic Approach)
1. मुख्य आयुर्वेदिक औषधियाँ (वैद्य की सलाह से):
- कांचनार गुग्गुल: अंडाशय की सूजन व सिस्ट कम करे।
- अशोकारिष्ट: मासिक चक्र नियमित करे।
- लोध्रासव: गर्भाशय की स्थिरता बढ़ाए।
- शतावरी चूर्ण: हार्मोनल बैलेंस करे।
- त्रिफला चूर्ण: शरीर को डिटॉक्स करे।
- गुड्डूची (गिलोय): पित्त नियंत्रण व सूजन कम करे।
- अश्वगंधा: तनाव कम करके हार्मोन सुधारे।
2. आहार निर्देश:
- सुबह खाली पेट गुनगुना नींबू-शहद जल।
- ताजा सब्जियां, मूंग, जौ, सूप, दालें।
- तला-भुना, डेयरी, मैदा और चीनी का सेवन कम करें।
- रात का भोजन हल्का और समय पर।
- गुड़/शहद का प्रयोग चीनी के विकल्प के रूप में।
3. जीवनशैली में बदलाव:
- रोज़ाना 30–45 मिनट योग या टहलना।
- 15 मिनट प्राणायाम/ध्यान।
- पूरी नींद लें, रात देर तक जागने से बचें।
- कैफीन, जंक फूड और मोबाइल ओवरयूज से दूरी बनाए रखें।
4. लाभकारी योगासन:
- भुजंगासन
- नौकासन
- मंडूकासन
- सेतुबंधासन
- अश्विनी मुद्रा
5. प्रभावी घरेलू उपाय:
- रात भर भिगोया मेथीदाना पानी
- तुलसी-नीम रस
- अश्वगंधा + दूध
- दालचीनी पानी
- गिलोय + एलोवेरा रस
वैज्ञानिक समर्थन
आधुनिक शोध भी पुष्टि करते हैं कि इंसुलिन रेजिस्टेंस, तनाव और जीवनशैली PCOD के मुख्य कारण हैं। अश्वगंधा, शतावरी और योग जैसे प्राकृतिक तत्व कोर्टिसोल (तनाव हार्मोन) को कम कर, ओव्यूलेशन को सामान्य करने में सहायता करते हैं।
डॉ. अग्रवाल का संदेश:
“PCOD का निदान एक ‘हॉलिस्टिक’ प्रक्रिया है — जहाँ औषधि, आहार, योग और मानसिक शांति सभी की भूमिका महत्वपूर्ण है। जब शरीर और मन दोनों संतुलित हों, तभी स्त्री स्वास्थ्य पूर्ण होता है।”
“संतुलन ही सौंदर्य है, और स्वास्थ्य ही सच्ची सुंदरता।”
— डॉ. मीना अग्रवाल, नेचुरोपैथी चिकित्सक, आगरा