आगरा।
प्रसिद्ध नेचुरोपैथी विशेषज्ञ डॉ. मीना अग्रवाल का मानना है कि उपवास केवल भोजन त्यागने का नाम नहीं, बल्कि यह शरीर, मन और इंद्रियों को संतुलित करने की एक प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति है। डॉ. अग्रवाल के अनुसार, प्राकृतिक चिकित्सा में उपवास को शरीर के पाचन संस्थान को विश्राम देने और आत्मशुद्धि की प्रक्रिया के रूप में देखा जाता है।
महर्षि चरक ने अपनी चरक संहिता में उपवास को ‘लंघन’ की श्रेणी में रखते हुए इसे शरीर शुद्धि का एक प्रमुख साधन बताया है। उपवास के समय शरीर की प्राण ऊर्जा भोजन के पाचन के बजाय विषाक्त तत्वों को बाहर निकालने में सक्रिय हो जाती है। यही कारण है कि उपवास को कई रोगों में प्रभावशाली माना जाता है।
डॉ. मीना अग्रवाल के अनुसार उपवास के प्रमुख लाभ:
पाचन संस्थान को विश्राम
शरीर से विषाक्त तत्वों का निष्कासन
कब्ज, गैस, मोटापा, दमा, गठिया आदि में लाभ
मानसिक शांति एवं आत्म संयम की प्राप्ति
उपवास की तैयारी: उपवास प्रारंभ करने से दो-तीन दिन पूर्व हल्का व संतुलित आहार लेना चाहिए। उपवास की पूर्व संध्या पर फलों का रस या उबली हुई सब्जियाँ लेना उचित रहता है, जिससे शरीर को आवश्यक खनिज एवं विटामिन मिलते हैं।
उपवास के दौरान क्या करें:
पर्याप्त मात्रा में जल का सेवन करें।
धीरे-धीरे टहलें।
कमजोरी पर नींबू-शहद का पानी लाभकारी होता है।
मानसिक एवं शारीरिक विश्राम पर ध्यान दें।
उपवास कैसे तोड़ें: उपवास समाप्त करना शुरू करने से अधिक चुनौतीपूर्ण हो सकता है। इस समय विशेष संयम एवं सतर्कता की आवश्यकता होती है। शुरुआत फलों के रस और हल्के भोजन जैसे खिचड़ी से करें। धीरे-धीरे पथ्य आहार में वृद्धि करें और छह दिन बाद सामान्य आहार की ओर लौटें।
निष्कर्ष: डॉ. मीना अग्रवाल का संदेश स्पष्ट है—”स्वस्थ शरीर ही सच्ची संपत्ति है।” उपवास न केवल शरीर की भीतरी सफाई करता है, बल्कि मानसिक रूप से भी व्यक्ति को सशक्त बनाता है। नेचुरोपैथी में यह चिकित्सा पद्धति आज की तेज़ रफ्तार जीवनशैली में एक वरदान है।
संपर्क: डॉ. मीना अग्रवाल, नेचुरोपैथी विशेषज्ञ, आगरा