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फीस न भर पाने पर परीक्षा से रोकी गई छात्रा रिया की आत्महत्या — क्या यही है हमारी शिक्षा व्यवस्था?

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उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले से आई एक दर्दनाक घटना ने पूरे समाज को झकझोर कर रख दिया है। 9वीं कक्षा की छात्रा रिया प्रजापति ने इसलिए अपनी जान दे दी क्योंकि उसके स्कूल ने फीस बकाया होने पर उसे परीक्षा में बैठने से रोक दिया और सार्वजनिक रूप से अपमानित किया।

रिया की मौत केवल एक बच्ची का अंत नहीं, बल्कि उस शिक्षा तंत्र की असफलता है जो केवल पैसों पर टिका है। देश में “नई शिक्षा नीति” और “समावेशी भारत” की बातें तो बहुत होती हैं, लेकिन जब एक बच्ची सिर्फ इसलिए स्कूल से बाहर कर दी जाती है क्योंकि उसके माता-पिता फीस नहीं भर सके, तो ये सारे दावे खोखले लगते हैं।

प्राइवेट स्कूल शिक्षा को अब एक व्यवसाय बना चुके हैं।

मनमानी फीस

बिल्डिंग चार्ज

यूनिफॉर्म और बुक्स के नाम पर जबरन खर्च

और सबसे दुखद — आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों के आत्मसम्मान को कुचलते शिक्षक और प्रबंधन।

रिया ने तो इस अन्याय के आगे हार मान ली, लेकिन जाते-जाते वह कई सवाल छोड़ गई है—

क्या शिक्षा अब सिर्फ अमीरों का अधिकार बन गई है?

क्या किसी छात्र को पढ़ाई से वंचित करने का हक़ किसी स्कूल को है?

और सबसे अहम, कौन है रिया की मौत का जिम्मेदार?

सरकार, प्रशासन और समाज— सभी को इस मुद्दे पर गंभीरता से सोचने की जरूरत है। रिया जैसी बच्चियां हजारों की संख्या में हैं, जो चुप हैं, टूट रही हैं।

रिपोर्टर : अंकित पाल

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