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मीना अग्रवाल, नेचुरोपैथी विशेषज्ञ का कहना है – “मालिश से शिशु का संपूर्ण विकास होता है, मां को खुद करनी चाहिए मालिश”

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शिशु की देखभाल में मालिश का विशेष स्थान होता है। नेचुरोपैथी विशेषज्ञ मीना अग्रवाल का मानना है कि शिशु की नियमित मालिश न केवल उसके शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक विकास में सहायक होती है, बल्कि यह रक्त संचार, प्रतिरोधक क्षमता और पाचन क्रिया को भी बेहतर बनाती है।

मालिश के फायदे:

मीना अग्रवाल कहती हैं कि मालिश से मां और शिशु के बीच का भावनात्मक रिश्ता भी गहरा होता है। यदि शिशु अशांत है या रो रहा है, तो मालिश से उसका तनाव कम होता है, चिड़चिड़ापन दूर होता है और वह खेलने लगता है। मालिश से शिशु को अच्छी नींद भी आती है।

मालिश कैसे करें:

मालिश करते समय पैरों की मालिश नीचे से ऊपर की ओर, यानी दिल की दिशा में करनी चाहिए।

तेल का चुनाव सोच-समझकर करें – ऑलिव ऑयल, नारियल या बादाम का तेल उपयुक्त हैं।

नाक और कान में तेल नहीं डालना चाहिए।

मालिश के लिए शांत, गरम और आरामदायक स्थान चुनें।

पंखा बंद कर दें, ताकि हवा लगने से शिशु को ठंड न लगे।

धूप में मालिश करने से शिशु को विटामिन D मिलता है और शरीर मजबूत होता है। लेकिन ध्यान रखें कि धूप बहुत तेज न हो। अगर हवा चल रही हो तो बंद कमरे में मालिश करें।

हल्के हाथों से मालिश करें, क्योंकि शिशु की त्वचा बहुत कोमल होती है।

एक्सरसाइज भी जरूरी:

मालिश के दौरान शिशु को थोड़ी बहुत एक्सरसाइज भी कराएं जैसे कि उसके दोनों हाथों को ऊपर-नीचे हिलाएं। मालिश के कम से कम एक घंटे बाद शिशु को नहलाएं।

मौसम के अनुसार रखें सावधानी:

गर्मी में मालिश के बाद थोड़ी देर खेलने देना चाहिए जबकि सर्दी में खास ध्यान रखें कि शिशु को हवा न लगे। ठंडी हवा लगने से कई बार शिशु को पोलियो जैसी समस्याएं भी हो सकती हैं।

माता-पिता का प्रेम है सबसे जरूरी:

मीना अग्रवाल कहती हैं –
“हर बच्चा अपने माता-पिता से प्रेम और ध्यान चाहता है। अगर बच्चे को माता-पिता का भरपूर ध्यान और स्नेह मिले, तो वह निश्चित रूप से वही बनेगा जैसा माता-पिता उसके लिए चाहते हैं।”

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